তুলসী (Tulsi/Holy Basil/ thai Krapho) একটি Lamiaceae family এর অন্তর্গত সুগন্ধি বীরুত্ জাতীয় উদ্ভিদ যার বৈজ্ঞানিক নাম Ocimum sanctum (sanctum অর্থ পবিত্র স্থান) । হাজার হাজার বছর ধরে সাধারণত কৃষ্ণ ও রাধা তুলসী এই দুই প্রকারে প্রাপ্ত তুলসী হিন্দু গৃহে পবিত্রতার প্রতীক হিসেবে পূজিত হয়ে আসছে যেহেতু এর পিছনে রয়েছে ধর্মীয় ,পরিবেশগত ও বৈজ্ঞানিক কারণ ।
ধর্মীয় কারণ :ব্রহ্মবৈবর্তপুরাণে তুলসীকে সীতাস্বরূপা ,স্কন্দপুরাণে লক্ষীস্বরূপা,চর্কসংহিতায় বিষ্ণুর ন্যায় ভুমি,পরিবেশ ও আমাদের রক্ষাকারী বলে বিষ্ণুপ্রিয়া ,ঋকবেদে কল্যাণী বলা হয়েছে । স্বয়ং ভগবান বিষ্ণু তুলসী দেবীকে পবিত্রা বৃন্দা বলে আখ্যায়িত করে এর সেবা করতে বলেছেন।
পরিবেশগত কারণ : পরীক্ষা করে দেখা গেছে যে তুলসীগাছ একমাত্র উদ্ভিদ যা দিন রাত চব্বিশ ঘণ্টা অক্সিজেন সরবরাহ করে বায়ু বিশুদ্ধ রাখে যেখানে অন্য যেকোন গাছ রাত্রিতে কার্বন ডাই অক্সাইড ত্যাগ করে তাই রাতের বেলাতে তুলসীতলায় শয়ন করাও ব্যক্তির জন্য উপকারী।এছাড়া তুলসীগাছ ভুমি ক্ষয় রোধক এবং তুলসী গাছ লাগালে তা মশা কীটপতঙ্গ ও সাপ থেকে দূরে রাখে।
বৈজ্ঞানিক ও স্বাস্থ্যগত কারণ:
*তুলসীতেEugenolঅধিক পরিমাণে থাকায় তা Cox-2 Inhibitorরূপে কাজ করে বলে তা ব্যথানাশক হিসেবে ব্যবহৃত হয়।
*Hypoglycemic drugs এর সাথে তুলসী খেলে তা টাইপ ২ ডায়াবেটিস রোগে দ্রুত গ্লুকোজের মাত্রা কমিয়ে দেয়।
*তেজস্ক্রিয়তার ফেলে ক্ষতিগ্রস্থ কোষসমুহকে মেরামত করে।
*চর্বিজনিত হৃদরোগে এন্টি অক্সিডেন্টের ভুমিকা পালন করে।
*তুলসী একশেরও বেশি Phytochemicals(যেমন oleanolic acid ,beta caryophyllene ইত্যাদি)বহন করে বলে ক্যান্সার চিকিত্সায় ব্যবহৃত হয়।
*তুলসীর অ্যালকোহলিক নির্যাস Immune system এর রোগ প্রতিরোধ করার ক্ষমতাকে বৃদ্ধি করে।
*তুলসী স্নায়ুটনিক ও স্মৃতিবর্ধক।
*শ্বসনতন্ত্রের বিভিন্নরোগ যেমন ব্রঙ্কাইটিস, ইনফ্লুয়েঞ্জা ,হাঁপানি প্রভৃতি রোগের নিরাময়ক।
*সর্দি ,কাশি, জ্বর, বমি, ডায়ারিয়া ,কলেরা ,কিডনির পাথর ,মুখের আলসারসহ চোখের বিভিন্ন রোগে ইহা ওষুধ হিসেবে ব্যবহৃত হয়।
*দাঁতের রোগে উপশমকারী বলে টুথপেস্ট তৈরিতে ব্যবহার করা হয়।
শুভ নন্দ চৌধুরী
সনাতন ধর্ম বিষয়ক প্রচার -সম্পাদক ,
ইসলামী বিশ্ববিদ্যালয়,
কুষ্টিয়া-বাংলাদেশ
ReplyDeleteजाग मछेंदर गोरख आया
,,,*आदेश आदेश,,,*
जोगी जोगी सब कहें, जोगी ना मिलिया कोई ।
जो मन अपना मार, ले सोही जोगी होई।।
तनको जोगी सब करें, मनको बिरला कोई.।
सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मनजोगी होइ.।।
अर्थ :शरीरमें भगवे वस्त्र धारण करना सरल है, पर मन को योगी बनाना बिरले ही व्यक्तियों का काम है य़दि मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं.त्वत को खोजना त्वत का विचार जिग्यासा को पूर्ण करना तो योगी हो अन्यथा बस भोगी ही भोगी
::::,,,नरेश नाथ,,,::::
सांवरो की गति सांवरो जाने। प्राणो को मस्तिषक में पकडे रखना सदगुरु कृपा से परमात्मा ही है यह निश्चय बनाये रखना यही गति परम् गति है।
अच्युत कर मति ईश्वरा:- शरीर यद्वा महापनौति ईश्वरमेंही चित्त को बनाये रखना यही ज्ञानहै।एक ही सच्चाई है और वैसे भी बाकी सारा झुठ ही है समझे ना समझे ! संतोषी नर नारी सदा सुखी। जब मनुष्य रुप में बच्चा तो क्या कोई भी जीव पैदा होता तो वह शिव आत्मा रुप ही होता है क्योकि वह शिवरुपि जीव देह अभ्याससे कई जोजन परे होता है। अगर आज भी अनुभूति करनीहो शिव आत्मा रूप तो प्राणो को शरीरसे निकाल कर मस्तिषक में बिठाने पडेंगे जो मरने के बराबर है क्योकी मनुष्य के प्राण जीतेजी मस्तिषक में बिठा सके वह गुरु की कृपा, सद्गुरु की कृपा, परमात्मा की कृपा है। जो तभी संभव होता है जब मनुष्य अपना शरीर त्याग दे जीसे लोग मरना कहते है वह है शिव मै आत्मा रुप जहा मन , बुध्धि, चित्त, वृत्ति और अहं से परे ब्रह्म की ही चलती है अहँब्रह्मास्मि। आप अपने आप को कैसे देखोगे शायद आपने आप देखने के लिएही शरीरधारण कीया हो शायद अब आप अभ्यास कर सके धन्यवाद प्रभु परमात्मा का जीसने जीज्ञासु को अवसर देते है जो नश्वर देह की अवधि पूरी हो उससे पहले शाश्वत की विधिवत्त जानकारी के साथ अपने आपको परम् शक्ति परमात्मा मेंसमर्पण करले शरणागत होके परम् गति को प्राप्त हो जा ये उसी दया सागर परम कृपालु परमात्मा जीसके बगैर अपनी आँखोकी पलक तक नहीं झपकती ओम श्री सत्त श्री अकाल जो काल के परे स्वयंँ है परमात्मा।+ आप अपने आप को कैसे देखोगे शायद आपने आप को देखने के लिएही शरीरधारण कीया हो शायद अब आप अभ्यास कर सके धन्यवाद प्रभु परमात्मा का जीसने जीज्ञासु को अवसर देते है जो नश्वर देह की अवधि पूरी हो उससे पहले शाश्वत की विधिवत्त जानकारी के साथ अपने आपको परम् शक्ति परमात्मा मेंसमर्पण करले शरणागत होके परम् गति को प्राप्त हो जा ये उसी दया सागर परम कृपालु परमात्मा जीसके बगैर अपनी आँखोकी पलक तक नहीं झपकती ओम श्री सत्त श्री अकाल जो काल के परे स्वयंँ है परमात्मा।